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sardar udham singh biography in hindi

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इस लेख में हम आपको सरदार उधम सिंह (sardar udham singh biography in hindi) के बारे में विस्‍तार से बताने वाले है।

देश के खातिर अपनी जान की बाजी लगाने वाले सरदार उधम सिंह भारत के सच्‍चे वीर सपूत है। सरदार उधम सिंह उस दौर में पैदा हुए थे जब इस देश पर अग्रेजो की हुकूमत थी। उन्‍होने अग्रेजो के अन्‍याय को बहुत करीब से देखा था। 13 अप्रैल 1919 का दिन सरदार उधम सिंह ने अपनी आखो के सामने जनरल डायर की गोलियो से निर्दोष भारतीयो को मरते हुए देखा था। इस घटना ने सरदार उधम सिंह को बेचैन कर दिया था। उन्‍होने बहुत कम उम्र में ये तय कर लिया था कि जनरल डायर को मारकर उससे निर्दोष भारतीयो का बदला लेगे। इसी बदले की भावना के चलते उन्‍होने इग्लैंंड जाकर जनरल को गोलिया से मार दिया था। इस घटना के बाद ही सरदार उधम सिंह दुनियाभर में फेमस हो गये है। अगर आप भारत के इस वीर सपूर शहीदे आजम के बारे में विस्‍तार से जानना चाहते है तो इस लेख को पूरा जरूर पढे। इस लेख में हम आपको सरदार उधम सिंह के बारे में विस्‍तार से बताने वाले है।

sardar udham singh biography in hindi

जनरल डायर से निर्दोष भारतीय की मौत का बदला लेने वाले सरदार उधम सिंह का जन्‍म 26 दिंसबर 1899 को पंंजाब के संगरूर जिले के सुनाम नाम के गांव में हुआ था। सरदार उधम सिंह को बचपन में लोग शेरशाह के नाम से भी जानते थे। उधम सिंह के पिता का नाम सरदार तेहाल सिंह था। उनके पिता जम्‍मू उपली गांव के रेलवे क्रांसिग पर वाचमैन का काम किया करते थे। उनकी माता का नाम नारायण कौर उर्र्फ नरेन कौर था जो कि एक गृहणी थी। उधम का एक भाई भी था जिसका नाम था मुक्‍ता सिंह। उधम सिंह की पिता की मृत्‍यू तब ही हो गई थी जब वो सिर्फ 12 साल के थे। पिता की मृत्‍यू के तकरीबन 6 साल बाद उधम सिंह की मा का भी देहांत हो गया था। बहुत कम उम्र में मा-बाप दोनो के गुजर जाने के चलते इन दोनो भाईयो की जिन्‍दगी अमृतसर के खालसा अनाथालय में व्‍यतीत हुई। उधम सिंह ने अपनी जिन्‍दगी में जो कुछ भी सीखा वो इसी अनाथालय में सीखा।

उधम सिंह का भाई भी 1917 में मृत्‍यू को प्राप्‍त हो गया। अपने भाई के मरने के बाद सरदार उधम सिंह काफी अकेले पड़ गये थे। इन विषम परिस्थितियों के बाद भी अनाथालय में रहते हुए भी 1918 में उधम सिंह ने अपनी मैट्रिक की परिक्षा उत्‍तीर्ण कर ली जो कि उस समय में एक बड़ी बात हुआ करती थी। अपनी मैट्रिक की परिक्षा उत्‍तीर्ण करने के बाद सरदार उधम सिंह ने खालसा अनाथालय को छोड दिया।

ये वही दौर था जब भगत सिंह और उनके साथियों ने अग्रेजो की नाक में दम कर रखा था। उधम सिंह भगत सिंह से काफी ज्‍यादा प्रभावित थे। भगत सिंह अपने देश को अग्रेजो की आजादी से मुक्‍त कराने के लिए जो काम कर रहे थे। उधम सिंह उसकी पूरी खबर थी। एक बार 1935 के करीब सरदार उधम सिंह को भगत सिंह की तस्‍वीर के साथ पकडा भी गया था। उधम सिंह को भगत सिंह की तरह ही देशभक्ति के गीत काफी ज्‍यादा पसन्‍द थे। वो हमेशा ऐसे गीत सुना करते थे जिसके अंदर देशभक्ति की बाते हुआ करती थी। वो खास तौर पर राम प्रसाद बिस्मिल के गानो के बहुत बडे शौकीन थे।

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सरदार उधम सिंह की कहानी

अग्रेजो की जिस करतूत ने सरदार उधम सिंह को बुरी तरह से अंदर से हिला दिया था वो जालियावाला बाग की घटना थी। 13 अप्रैल 1919 को इस जालियावाला बाग में जनरल डायर ने अपनी सेना को निर्दोष बच्‍चो और बुर्जगो पर गोली चलाने का आदेश था। ये वो लोग थे जो इस बाग में जमा होकर अग्रेजो के खिलाफ विरोध प्रर्दशन कर रहे थे। उधम सिंह ने इस घटना को अपनी आखो से देखा जो हमेशा उन्‍हे अंदर से परेशान करती रहती थी। उधम सिंह ने जनरल डायर को मारना अपनी जिन्‍दगी का मकसद बना लिया था। उन्‍होने ये तय लिया था कि जिसके इशारे पर सैकडो बेगुनाह लोगो को मारा गया वो उसे किसी भी हाल मे जिन्‍दा नही छोडेगे।

उधम सिंह की अमूल्य शहादत

  • जनरल डायर के मृत्यु का दोषी 4 जून 1940 को उधम सिंह को घोषित कर दिया गया. 31 जुलाई 1940 को लंदन के “पेंटोनविले जेल” में उनको फांसी की सजा दी गई.
  • उधम सिंह जी के मृत शरीर के अवशेष को उनकी पुण्यतिथि 31 जुलाई 1974 के दिन भारत को सौंप दिया गया था.
  • उधम सिंह जी की अस्थियों को सम्मान पूर्ण भारत वापस लाया गया. और उनके गांव में उनकी समाधि को बनाया गया.

इस तरह उन्होंने अपने देशवासियों के लिए मात्र 40 वर्ष की आयु में अपने आप को समर्पण कर दिया. जिस दिन उधम सिंह जी को फांसी दी गई थी, उसी दिन से भारत में क्रांतिकारियों का आक्रोष अंग्रेजों के प्रति और भी बढ़ गया था. इनके शहीद होने के मात्र 7 वर्ष बाद भारत अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गया था.

उधम सिंह का सम्मान और विरासत

  • सिखों के हथियार जैसे :- चाकू, डायरी और शूटिंग के दौरान उपयोग की गई गोलियों को स्कॉटलैंड यार्ड में ब्लैक म्यूजियम में उनके सम्मान के रूप में रखा गया है.
  • राजस्थान के अनूपगढ़ में शहीद उधम सिंह के नाम पर चौकी भी मौजूद है.
  • अमृतसर के जलिया वाले बाग के नजदीक में सिंह लोगों को समर्पित एक म्यूजियम भी बनाया गया है.
  • उधम सिंह नगर जो झारखंड में मौजूद है. इस जिले के नाम को भी उन्हीं के नाम से प्रेरित होकर रखा गया था.
  • उनकी पुण्यतिथि के दिन पंजाब और हरियाणा में सार्वजनिक अवकाश रहता है.

उधम सिंह जी के द्वारा दिए गए बलिदान को कई भारतीय फिल्मों में फिल्माया गया है, जो इस प्रकार हैं:-

  • जलियांवाला बाग़ (1977)
  • शहीद उधम सिंह (1977)
  • शहीद उधम सिंह (2000)

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उधम सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियां 

  • उधम सिंह ने अपने द्वारा लिए गए संकल्प को पूरा करने के मकसद से उन्होंने अपने नाम को अलग-अलग जगहों पर बदला और वे दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे , ब्राजील , अमेरिका , नैरोबी जैसे बड़े देशों में अपनी यात्राएं की.
  • उधम सिंह जी, भगत सिंह जी के और राहों पर चलने लगे थे.
  • 1913 में गदर पार्टी का निर्माण किया गया था. इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत में क्रांति भड़काने के लिए किया गया था.
  • 1924 में उधम सिंह जी ने इस पार्टी से जुड़ने का निश्चय कर लिया और वे इससे जुड़ भी गए.
  • भगत सिंह जी ने उधम सिंह जी को 1927 में वापस अपने देश आने का आदेश दिया.
  • उधम सिंह वापस लौटने के दौरान अपने साथ 25 सहयोगी, रिवाल्वर और गोला-बारूद जी लेकर आए थे. परंतु इसी दौरान उनको बिना लाइसेंस हथियार रखने के लिए उनको गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने अगले 4 साल जेल में ही व्यतीत किए सिर्फ यही सोचकर कि, वह बाहर निकल कर जनरल डायर के द्वारा किए गए दंडनीय अपराध का बदला अपने देशवासियों के लिए लेकर रहेंगे.
  • 1931 में जेल से रिहा होने के बाद वे अपने संकल्प को पूरा करने के लिए कश्मीर गए फिर कश्मीर से वे भागकर जर्मनी चले गए.
  • 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंच गए और वहां पर उन्होंने अपने कार्य को अंजाम देने के लिए सही समय का इंतजार करना शुरू कर दिया.
  • भारत का यही वीर पुरुष जलिया वाले बाग के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के “कास्टन हाल” में बैठक थी. जहां माइकल ओ’ डायर को उसके किए का दंड देने के लिए तैयार बैठा था. जैसे ही वह बैठक का वक्त समीप आया वैसे ही उधम सिंह ने आगे बढ़कर जनरल डायर को मारने के लिए दो शॉर्ट दाग दिए, जिससे जनरल डायर की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई.
  • कहा जाता है, कि उन्होंने इसलिए इस दिन का इंतजार किया ताकि पूरी दुनिया जनरल डायर द्वारा किए गए जघन्य अपराध की सजा पूरी दुनिया देख सकें.
  • उन्होंने अपने काम को अंजाम देने के बाद गिरफ्तारी के डर से भागने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया और उसी जगह पर वह शांत खड़े रहे.
  • उनको इस बात का गर्व था , कि उन्होंने अपने देशवासियों के लिए वह करके दिखाया जो सभी भारतीय देशवासी चाहते थे. ऐसे ना जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने देश के प्रति अपना प्रेम , सहयोग और अपना आत्मसमर्पण प्रदान किया है.

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